5.93 माइक्रोवाइटा संबंधी कुछ अन्य तथ्य
1. वास्तव में माइक्रोवाइटा न तो मनुष्य के मित्र होते हैं और न ही शत्रु। उनकी मित्रता या शत्रुता इस बात पर निर्भर करती है कि वे किस प्रकृति के मनुष्यों द्वारा नियंत्रित किये जा रहे हैं।
2. कुछ माइक्रोवाइटा आकाश(space) , कुछ मानसिक(psychic), और कुछ अतिमानसिक(supra-psychic) स्पेस को ग्रहण कर सकते हैं , वे आध्यात्मिक क्षेत्र को प्रभावित नहीं कर सकते पर भौतिक और मानसिक क्षेत्र को प्रभावित करते हैं। माइक्रोवाइटा रात को अधिक सक्रिय होते हैं जब मनुष्य सो जाते हैं।
3. नर और मादा शरीरों में माइक्रोवाइटा की संख्या और प्रकार भिन्न भिन्न होते हैं, इसी लिये उनकी शारीरिक संरचना भिन्न होती है। वे लड़के लड़कियाॅं जिनके शरीर में अभी शुक्राणुओं का निर्माण प्रारंभ नहीं हुआ है वे किसी भी प्रकार के माइक्रोवाइटा के आघात को नहीं सह सकते। परंतु जिस नर शरीर में टेस्टिस ग्रंथियाॅं सक्रिय हो चुकी हैं माइक्रोवाइटा उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाते। मादा शरीर भी यदि परम पुरुष के विधान को संतुष्ठ करते हैं तो उनकी कृपा उन पर भी होती हैं। मनुष्य की शक्ति परमपुरुष से बहुत कम होती है।
4. मनुष्यों का मन एक्टोप्लाज्म का बना होता है पर इसमें गति आती है माइक्रोवाइटा की गति के कारण। और माइक्रोवाइटा गति करते हैं वृत्तीय गति में, परम सत्ता के निर्देश पर ।
5. माइक्रोवाइटा सबसे छोटी संरचना हैं अतः परमाणु या सोलर सिस्टम की तरह उनकी संरचना नहीं है। चूंकि वे इकाई अस्तित्व हैं उन्हें संरचना की कोई आवश्यकता नहीं। प्रकृति के अनुसार वे ‘पदार्थ‘ की अपेक्षा ‘ऊर्जा‘ अधिक हैं, यही कारण है कि वे तन्मात्राओं के माध्यम से गति कर सकते हैं जबकि अन्य कोई नहीं।
6. धनात्मक माइक्रोवाइटम पदार्थ की अपेक्षा एक्टोप्लाज्म अधिक हैं और ऋणात्मक माइक्रोवाइटा मन और एक्टोप्लाज्म की अपेक्षा अधिक पदार्थ हैं। धनात्मक माइक्रोवाइटा एक्टोप्लाज्मिक होने के कारण पहले मानसिक स्तर पर क्रियाशील होते हैं फिर भौतिक पदार्थ की ओर आते हैं जबकि ऋणात्मक माइक्रोवाइटा पदार्थ पर पहले सक्रिय होते हैं और फिर मन और एक्टोप्लाज्म और एन्डोप्लाज्म की ओर।
7. यदि किसी के शरीर में एक साथ अधिक संख्या में ऋणात्मक माइक्रोवाइटा प्रवेश कर जाये तो वह तत्काल मर जायेगा। जिन महिलाओं के मन अत्यधिक संवेदनशील होते हैं वे ऋणात्मक या धनात्मक किसी भी प्रकार के माइक्रोवाइटा को सहन नहीं कर सकती उनकी तत्काल मृत्यु हो जायेगी। मासाहारी शरीर भी धनात्मक माइक्रोवाइटा प्राप्त नहीं कर सकता। माइक्रोवाइटा ग्रंथियों को सीधे प्रभावित करते हैं अतः हारमोन्स और स्मृति को भी प्रभावित करते हैं।
8. आज्ञा चक्र धनात्मक माइक्रोवाइटा के लिये सबसे उच्च विंदु है यदि वे उससे आगे बढ़ा दिये जाते हैं तो इसे गुरुकृपा कहते हैं और जब उन्हें आज्ञाचक्र से सहस्त्रार तक लाया जाता है तो इसे परमपुरुष या गुरु की करुणा कहते हैं। विना कृपा के करुणा नहीं होती अतः सभी को उनकी कृपा की चाह रखना चाहिये रुष्टि अथवा
ऋणात्मक माइक्रोवाइटा की नहीं।
9. ऋणात्मक माइक्रोवाइटा को धनात्मक माइक्रोवाइटा से ही नियंत्रित किया जा सकता है मानलो कोई ऋणात्मक माइक्रोवाइटा से होने वाली बीमारी पीलिया से ग्रस्त है तो यदि रोगी के द्वारा उचित तरीके से ध्यान किया जाता है तो बीमारी जल्दी ठीक हो जायेगी। पेट के केंसर रोग के लिये इसके साथ कुछ भोजन संबंधित नियम द्रढ़ता से पालन करना होंगे और पेट में दर्द होने पर ध्यान में बैठने के पहले थोड़ा सा मीठा फलों का रस पीना चाहिये और ध्यान की समाप्ति पर पहले से भिन्न प्रकार का मीठा रस पीने पर दर्द ठीक हो जायेगा। खट्टा रस नहीं पीना चाहिये। मरीज को गैस बनाने वाले पदार्थ जैसे पापड़ गोभी आदि से परहेज करना चाहिये।
10. यदि सदगुरु कुछ कह रहे हैं और कोई गूंगा और बहरा उसे सुनना चाहे तो उसे वराभय मुद्रा पर गहराई से ध्यान केन्द्रित करना चहिये इससे धनात्मक माइक्रोवाइटा का सीधा प्रभाव होगा और उसे सुनाई देने लगेगा। वराभय मुद्रा से माइक्रोवाइटा उत्सर्जित होते हैं यह आन्तरिक रहस्य है। धनात्मक माइक्रोवाइटा यदि आज्ञा चक्र के आगे तेज गति करने लगता है तो आध्यात्मिक प्रगति तेज हो जाती है चाहे नर हो या नारी, परंतु उसे शाकाहारी होना चाहिये। माइक्रोवाइटा से ग्लेंड और उपग्लेंड, चक्र, नाभिक और नर्वसैल सभी प्रभावित होते हैं अतः उनसे काया का रूपान्तरण भी किया जा सकता हैं।
11. यदि कोई कहे कि परमाणु पदार्थ का निर्माता घटक है तो इसी प्रकार कहा जा सकता है कि विचार माइक्रोवाइटा का निर्माता घटक है। इसलिये माइक्रोवाइटा पदार्थ की प्रारंभिक अवस्था हैं और पदार्थ और विचार के बीच चमकदार रेखा हैं भले ही वे पदार्थ की अपेक्षा विचारों की वास्तविकता के अधिक निकट होते हैं।
12. माइक्रोवाइटा सभी ,उन्नत अथवा अनुन्नत, जीवों पर अपना प्रभाव समान रूप से डालते हैं। धनात्मक माइक्रोवाइटा जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता लानें के विचार पैदा करता है जबकि ऋणात्मक माइक्रोवाइटा स्वार्थी विचार भरता है।ऋणात्मक माइक्रोवाइटा भौतिक धन संपत्ति और सुख सुविधाओं की चाह जगाते हैं।साॅंसारिक राजनैतिक आर्थिक और सामाजिक बंधनों से मुक्ति के विचार ऋणात्मक माइक्रोवाइटा से और समग्र मुक्ति के विचार धनात्मक माइक्रोवाइटा से आते हैं। ऋणत्मक माइक्रोवाइटा से प्ररित होकर कोई अन्याय को सहता है और धनात्मक माइक्रोवाइटा से प्रेरित होकर अन्याय नहीं सहता है। इंद्रियों की सीमा से परे किसी को मान्यता न देने की मानसिकता ऋणात्मक और किसी क्षणिक और निर्पेक्ष गति को न मानने की मानासिकता धनात्मक माइक्रोवाइटा से आती है और यह संस्कार वृत्तियाॅं स्वधिष्ठान चक्र से संबंधित होती हैं। जब किसी के आज्ञा चक्र पर धनात्मक माइक्रोवाइटा से ऋणात्मक माइक्रोवाइटा का प्रभाव अधिक क्रियारत हो जाता है तो उसे मानसिक वीमारियाॅं घेर लेती हैं। इसे दूर करने का उपाय केवल आध्यात्म साधना ही है ।
जो आध्यात्मिक साधना करते हैं वे मानसिक वीमारियों से मुक्त रहते हैं।
13. दोनों प्रकार के माइक्रोवाइटा ब्रह्मांड में संतुलन बनाये रखते हैं पर जब ऋणात्मकों का संयुक्त प्रभाव धनात्मकों से अधिक हो जाता है तो समाज में अराजकता और अनैतिकता बढ़ती है और धनात्मकों का संयुक्त प्रभाव बढ़ जाने पर धार्मिक उन्नति होती है। इसलिये कुछ अच्छा और प्रभावी काम करने के लिये धनात्मक माइक्रोवाइटा को उत्साहपूर्वक संग्रहित करने का उपाय करना होगा।
1. वास्तव में माइक्रोवाइटा न तो मनुष्य के मित्र होते हैं और न ही शत्रु। उनकी मित्रता या शत्रुता इस बात पर निर्भर करती है कि वे किस प्रकृति के मनुष्यों द्वारा नियंत्रित किये जा रहे हैं।
2. कुछ माइक्रोवाइटा आकाश(space) , कुछ मानसिक(psychic), और कुछ अतिमानसिक(supra-psychic) स्पेस को ग्रहण कर सकते हैं , वे आध्यात्मिक क्षेत्र को प्रभावित नहीं कर सकते पर भौतिक और मानसिक क्षेत्र को प्रभावित करते हैं। माइक्रोवाइटा रात को अधिक सक्रिय होते हैं जब मनुष्य सो जाते हैं।
3. नर और मादा शरीरों में माइक्रोवाइटा की संख्या और प्रकार भिन्न भिन्न होते हैं, इसी लिये उनकी शारीरिक संरचना भिन्न होती है। वे लड़के लड़कियाॅं जिनके शरीर में अभी शुक्राणुओं का निर्माण प्रारंभ नहीं हुआ है वे किसी भी प्रकार के माइक्रोवाइटा के आघात को नहीं सह सकते। परंतु जिस नर शरीर में टेस्टिस ग्रंथियाॅं सक्रिय हो चुकी हैं माइक्रोवाइटा उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाते। मादा शरीर भी यदि परम पुरुष के विधान को संतुष्ठ करते हैं तो उनकी कृपा उन पर भी होती हैं। मनुष्य की शक्ति परमपुरुष से बहुत कम होती है।
4. मनुष्यों का मन एक्टोप्लाज्म का बना होता है पर इसमें गति आती है माइक्रोवाइटा की गति के कारण। और माइक्रोवाइटा गति करते हैं वृत्तीय गति में, परम सत्ता के निर्देश पर ।
5. माइक्रोवाइटा सबसे छोटी संरचना हैं अतः परमाणु या सोलर सिस्टम की तरह उनकी संरचना नहीं है। चूंकि वे इकाई अस्तित्व हैं उन्हें संरचना की कोई आवश्यकता नहीं। प्रकृति के अनुसार वे ‘पदार्थ‘ की अपेक्षा ‘ऊर्जा‘ अधिक हैं, यही कारण है कि वे तन्मात्राओं के माध्यम से गति कर सकते हैं जबकि अन्य कोई नहीं।
6. धनात्मक माइक्रोवाइटम पदार्थ की अपेक्षा एक्टोप्लाज्म अधिक हैं और ऋणात्मक माइक्रोवाइटा मन और एक्टोप्लाज्म की अपेक्षा अधिक पदार्थ हैं। धनात्मक माइक्रोवाइटा एक्टोप्लाज्मिक होने के कारण पहले मानसिक स्तर पर क्रियाशील होते हैं फिर भौतिक पदार्थ की ओर आते हैं जबकि ऋणात्मक माइक्रोवाइटा पदार्थ पर पहले सक्रिय होते हैं और फिर मन और एक्टोप्लाज्म और एन्डोप्लाज्म की ओर।
7. यदि किसी के शरीर में एक साथ अधिक संख्या में ऋणात्मक माइक्रोवाइटा प्रवेश कर जाये तो वह तत्काल मर जायेगा। जिन महिलाओं के मन अत्यधिक संवेदनशील होते हैं वे ऋणात्मक या धनात्मक किसी भी प्रकार के माइक्रोवाइटा को सहन नहीं कर सकती उनकी तत्काल मृत्यु हो जायेगी। मासाहारी शरीर भी धनात्मक माइक्रोवाइटा प्राप्त नहीं कर सकता। माइक्रोवाइटा ग्रंथियों को सीधे प्रभावित करते हैं अतः हारमोन्स और स्मृति को भी प्रभावित करते हैं।
8. आज्ञा चक्र धनात्मक माइक्रोवाइटा के लिये सबसे उच्च विंदु है यदि वे उससे आगे बढ़ा दिये जाते हैं तो इसे गुरुकृपा कहते हैं और जब उन्हें आज्ञाचक्र से सहस्त्रार तक लाया जाता है तो इसे परमपुरुष या गुरु की करुणा कहते हैं। विना कृपा के करुणा नहीं होती अतः सभी को उनकी कृपा की चाह रखना चाहिये रुष्टि अथवा
ऋणात्मक माइक्रोवाइटा की नहीं।
9. ऋणात्मक माइक्रोवाइटा को धनात्मक माइक्रोवाइटा से ही नियंत्रित किया जा सकता है मानलो कोई ऋणात्मक माइक्रोवाइटा से होने वाली बीमारी पीलिया से ग्रस्त है तो यदि रोगी के द्वारा उचित तरीके से ध्यान किया जाता है तो बीमारी जल्दी ठीक हो जायेगी। पेट के केंसर रोग के लिये इसके साथ कुछ भोजन संबंधित नियम द्रढ़ता से पालन करना होंगे और पेट में दर्द होने पर ध्यान में बैठने के पहले थोड़ा सा मीठा फलों का रस पीना चाहिये और ध्यान की समाप्ति पर पहले से भिन्न प्रकार का मीठा रस पीने पर दर्द ठीक हो जायेगा। खट्टा रस नहीं पीना चाहिये। मरीज को गैस बनाने वाले पदार्थ जैसे पापड़ गोभी आदि से परहेज करना चाहिये।
10. यदि सदगुरु कुछ कह रहे हैं और कोई गूंगा और बहरा उसे सुनना चाहे तो उसे वराभय मुद्रा पर गहराई से ध्यान केन्द्रित करना चहिये इससे धनात्मक माइक्रोवाइटा का सीधा प्रभाव होगा और उसे सुनाई देने लगेगा। वराभय मुद्रा से माइक्रोवाइटा उत्सर्जित होते हैं यह आन्तरिक रहस्य है। धनात्मक माइक्रोवाइटा यदि आज्ञा चक्र के आगे तेज गति करने लगता है तो आध्यात्मिक प्रगति तेज हो जाती है चाहे नर हो या नारी, परंतु उसे शाकाहारी होना चाहिये। माइक्रोवाइटा से ग्लेंड और उपग्लेंड, चक्र, नाभिक और नर्वसैल सभी प्रभावित होते हैं अतः उनसे काया का रूपान्तरण भी किया जा सकता हैं।
11. यदि कोई कहे कि परमाणु पदार्थ का निर्माता घटक है तो इसी प्रकार कहा जा सकता है कि विचार माइक्रोवाइटा का निर्माता घटक है। इसलिये माइक्रोवाइटा पदार्थ की प्रारंभिक अवस्था हैं और पदार्थ और विचार के बीच चमकदार रेखा हैं भले ही वे पदार्थ की अपेक्षा विचारों की वास्तविकता के अधिक निकट होते हैं।
12. माइक्रोवाइटा सभी ,उन्नत अथवा अनुन्नत, जीवों पर अपना प्रभाव समान रूप से डालते हैं। धनात्मक माइक्रोवाइटा जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता लानें के विचार पैदा करता है जबकि ऋणात्मक माइक्रोवाइटा स्वार्थी विचार भरता है।ऋणात्मक माइक्रोवाइटा भौतिक धन संपत्ति और सुख सुविधाओं की चाह जगाते हैं।साॅंसारिक राजनैतिक आर्थिक और सामाजिक बंधनों से मुक्ति के विचार ऋणात्मक माइक्रोवाइटा से और समग्र मुक्ति के विचार धनात्मक माइक्रोवाइटा से आते हैं। ऋणत्मक माइक्रोवाइटा से प्ररित होकर कोई अन्याय को सहता है और धनात्मक माइक्रोवाइटा से प्रेरित होकर अन्याय नहीं सहता है। इंद्रियों की सीमा से परे किसी को मान्यता न देने की मानसिकता ऋणात्मक और किसी क्षणिक और निर्पेक्ष गति को न मानने की मानासिकता धनात्मक माइक्रोवाइटा से आती है और यह संस्कार वृत्तियाॅं स्वधिष्ठान चक्र से संबंधित होती हैं। जब किसी के आज्ञा चक्र पर धनात्मक माइक्रोवाइटा से ऋणात्मक माइक्रोवाइटा का प्रभाव अधिक क्रियारत हो जाता है तो उसे मानसिक वीमारियाॅं घेर लेती हैं। इसे दूर करने का उपाय केवल आध्यात्म साधना ही है ।
जो आध्यात्मिक साधना करते हैं वे मानसिक वीमारियों से मुक्त रहते हैं।
13. दोनों प्रकार के माइक्रोवाइटा ब्रह्मांड में संतुलन बनाये रखते हैं पर जब ऋणात्मकों का संयुक्त प्रभाव धनात्मकों से अधिक हो जाता है तो समाज में अराजकता और अनैतिकता बढ़ती है और धनात्मकों का संयुक्त प्रभाव बढ़ जाने पर धार्मिक उन्नति होती है। इसलिये कुछ अच्छा और प्रभावी काम करने के लिये धनात्मक माइक्रोवाइटा को उत्साहपूर्वक संग्रहित करने का उपाय करना होगा।
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