8-6 भूत प्रेत और विभ्रम (पिछली पोस्ट का शेष -----)
भौतिक शरीर का संचालन नाड़ीतंतुओं द्वारा करता है। गंध, रूप, स्पर्श , स्वाद आदि के रूप में प्राप्त कम्पन इन नाड़ी तंतुओं द्वारा प्राप्त किये या बाहर प्रक्षिप्त किये जाते हैं। परंतु सूक्ष्म शरीरों की नाडि़यां होती नहीं हैं अतः वे भौतिक संचालन कैसे करेंगी? केवल एक प्रकार बचता है अपने आप में स्वप्रेरित सूचना उत्पन्न कर किसी कंपन को अनुभूत करना। ये सूक्ष्म शरीर भूत नहीं हैं और न ही स्वप्रेरित या वाह्य प्रेरित तरंगों के वशीभूत होते हैं। यदि किन्हीं परिस्थितियों में किसी को ये सूक्ष्म शरीर दिखते हैं तो वह सोच सकता है कि वह भूत है परंतु , वह सूक्ष्म शरीर है । यह दिन में दिखाई नहीं देता पूर्ण अंधकार में यह संभव है परंतु हर जगह नहीं । सूक्ष्म शरीर सात प्रकार के होते हैं, यक्ष, सिद्ध, गंधर्व, किन्नर, विद्याधर, प्रकृतिलीन और विदेहलीन। यक्षः- मानलो कोई उच्च स्तरीय साधक परम पुरुष की साधना करते हुए बहुत आगे बढ़ गया परंतु उसे द्रव्य का लोभ रह गया और उसने भले ही ईश्वर से कुछ नहीं मांगा परंतु यह धारणा रखी कि जब इतना भजन पूजन किया है तो ईश्वर उसे इतना धन तो अवश्य दे देंगे कि धनाड्य हो जाउंगा और यह सोचते सोचते शरीर को छोड़ देता है तो यक्ष नामक सूक्ष्म शरीर प्राप्त करता है। सिद्धः- वे साधक जिन्हें परमपुरुष से वेहद प्यार है परंतु विभिन्न सिद्धियों की चाह मन में छिपी हुई है तो मरने के बाद ये सिद्ध नामक सूक्ष्म शरीर पाते हैं। इनकी स्थिति सभी सूक्ष्म शरीरों में श्रेष्ठ होती है और वे साधकों को साधना के मार्ग में मदद करते हैं। विद्याधरः- प्रभु भक्ति करते करते जिनकी इच्छा ज्ञान की प्रकांडता प्राप्त करने की होती है और इसी बीच वे शरीर छोड़ देते है तो उन्हे विद्याधर नामक सूक्ष्मशरीर प्राप्त होता है। गंधर्वः-संगीत विज्ञान में उत्कृष्ट निपुणता के लिये जो साधक साधना करते करते देह त्याग करते हैं वे गंधर्व नामक सूक्ष्मशरीर प्राप्त करते हैं। किन्नरः- भौतिक सुन्दरता की चाह में जो साधक साघना करते हैं वे देह त्याग के बाद किन्नर नामक सूक्ष्मशरीर प्राप्त करते हैं। इन पांचों सूक्ष्मशरीरों को संयुक्त रूपसे देवयोनि कहा जाता है। इसके अलावा विदेहलीन और प्रकृतिलीन नामक सूक्ष्मशरीर भी होते हैं। जिन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान को तत्काल पहुंचने की दिव्यशक्ति प्राप्त करने की इच्छा से साधना करते हैं वे विदेहलीन और जो परमपुरुष को पहाड़ों, पत्थरों या अन्य स्थानों में या रूपों में स्थापित मानकर पूजा करते हैं वे प्रकृतिलीन नामक सूक्ष्मशरीर पाते हैं। ये सभी सूक्ष्मशरीर होते हैं भूत नहीं और न ही विभ्रम।
अतः जब भूत पिशाच न तो धनात्मक न ऋणात्मक विभ्रम हैं और, न देवयोनि, तो क्या हैं? वास्तव में जब किसी की अतृप्त इच्छाओं के संचित संस्कार, मृत्यु के समय, जबकि मन शरीर से प्रथक हो रहा होता है तो उसके साथ जुड़ जाते हैं। अतः यद्यपि भौतिक शरीर नष्ट हो जाता है और मन क्रियाशील नहीं हो पाता है परंतु उसकी शक्तियां पोटेंशियल रूप (potential form) में रहती हैं अतः यदि अनुकूल परिस्थतियों में किसी जीते जागते व्यक्ति का एक्टोप्लाज्म अर्थात् मनोभौतिक तंतु शरीरहीन मन के पोटेशियल फार्म से जुड़ जाता है तो शरीरहीन मन बहुत थोड़े समय के लिये अस्थायी मानसिक शरीर धारण कर लेता है और जीते जागते व्यक्ति के भौतिक शरीर के स्नायु तंतुओं द्वारा अपना फंक्शन करने लगता है। इसे प्रशीत मनस् कहा जाता है और जनसामान्य कहते हैं कि अमुक को प्रेत ने ग्रस्त कर लिया है। ये न तो धनात्मक और न ही ऋणात्मक विभ्रम है और न ही देवयोनि। वास्तव में जीवित व्यक्ति के एक्टोप्लाज्मिक सैल किसी मृत व्यक्ति का मानसिक शरीर बन जाते हैं। दो चार मिनटों में यह शरीर भी मर जाता है, यह रिक्रियेटेड माइंड कहलाता है। कुछ व्यक्ति प्रशीत मनस् द्वारा अच्छे काम कराते हैं परंतु इन्हें नाड़ी तंतुओं पर पूरा कंट्रोल होना चाहिये। बुरे लोग प्रशीत् मनस् का दुरुपयोग करते हैं, लोगों के घरों में नुकसान करते हैं, फरनीचर तोड़वा देते हैं हड्डियां फिकवाते हैं आदि आदि, परंतु यह दो चार मिनट से ज्यादा नहीं होता । इसतरह हम देखते हैं कि तथाकथित भूतप्रेत न तो विभ्रम और न ही सिद्ध या प्रशीत मनस होते हैं यथार्थतः हम इनमें से किसी का अस्तित्व सिद्ध नहीं कर सकते। जहां तक धनात्मक विभ्रम का प्रश्न है उसका वास्तविक अस्तित्व है ही नहीं यदि किसी को धनात्मक विभ्रम है तो वह मानसिक रोग है। यदि कभी इस प्रकार के प्रशीत मनस् आपको दिखाई दें तो इसका एकमात्र उपाय प्रभुकीर्तन ही है। एक मिनट तक अपना बीजमंत्र मन ही मन उच्चारित करने या कीर्तन करने से भूत पिशाच तत्क्षण वायु में विलीन हो जावेगा। अतः किसी भी परिस्थति में हमें इनसे डरना नहीं चाहिये।
इससे स्पष्ट है कि तथाकथित भूत कमजोर और असुरक्षा अनुभव करने वाले मन की कल्पना है जो भय के समय पुरानी कल्पनाओं के अनुसार आकार ले लेती हैं। जब भय, सम्मोहन या जड़ता के कारण मन का काममय कोष अस्थायी रूपसे निलंबित हो जाता है तो मनोमय कोष में होने वाले कम्पन सत्य प्रतीत होने लगते हैं। जैसे, स्वप्न देखते समय भी यही घटना होती है। मनोविज्ञान के अनुसार भूत, देवी, देवता आदि का दिखाई देना उपरोक्त कारण से ही होता है इन में से किसी का भी अस्तित्व नहीं है। प्रबल इच्छाशक्ति वाले व्यक्ति द्वारा कमजोर मन वाले व्यक्ति को धनात्मक या ऋणात्मक विभ्रम देकर हिपनोटाइज किया जाने पर कमजोर मन वह देखने लगता है जो बाहर से प्रबल मन का व्यक्ति प्रेरित करता है। इस प्रकार का प्रबल मन वाला व्यक्ति अपने एक्टोप्लाज्म की सहायता से शरीरहीन अर्थात् मृत व्यक्ति की आत्मा में अपनी इच्छानुसार आकार बनाने या काम करने का आदेश देकर कमजोर मन को प्रभावित कर सकता है, क्योंकि कमजोर मन इन आकारों को स्पष्टतः देख सकता है। जब यह घटना स्वयं को हिपनोटाइज करने पर घटित होती है तो कोई अपने संस्कारों के अनुरूप देवी या देवता के अपने ऊपर आने की अनुभूति करता है और प्रश्नो के उत्तर या रोगों को ठीक करने की दवा बतलाता है वह अपने सबकान्शस अर्थात् अवचेतन मन की सहायता से करता है क्योंकि हिपनोटाईज्ड मन अधिक शक्तिशाली हो जाता है। स्पष्ट है कि यह सब मन की ही अवस्थायें हैं। जब किसी को भूतप्रेत लग जाते है तो उसका काममयकोष अक्रिय/निलंवित हो जाता है और मनोमय कोष आत्मनिर्भता से सोच नहीं पाता है, इसी लिये ओझालोग उसके नर्वस सिस्टम को सक्रिय करने के उपाय करते हैं, जैसे अंगुलियों पर जोर का दवाव देना, मिर्च या तीखे धुएं की वौछार नाक पर डालना, या अन्य उपाय करना जिससे वह चैतन्य अवस्था में आ जावे । वे जानते हैं कि एक वार चैतन्य अवस्था आ गई तो देवी देवता और भूत प्रेत सब भाग जावेंगे। अतः इस मनोवैज्ञानिकता को याद रखना चाहिये और कभी भी अपनी मानसिक तरंगों को कमजोर नहीं पड़ने देना चाहिये, प्रबल इच्छाशक्ति हर स्तर पर सहायता करती है।
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