Friday 15 May 2015

8.6 भूत प्रेत और विभ्रम

8.6  भूत प्रेत और विभ्रम
        आश्चर्य, चमत्कार और रहस्य ऐंसे शब्द हैं, जो प्रत्येक का मन आकर्षित करते हैं। भूत प्रेतों की कहानियाॅं तो प्रत्येक ने सुनी और सुनाई होती हैं। इन कहानियों को सुनकर मैं बाल्यावस्था से ही इनके पीछे क्या रहस्य है यह जानने की चेष्टा करता रहा हूं परंतु न तो मुझे कभी प्रेतों के दर्शन  हुए और न ही अन्य वैज्ञानिक समाधान। विभ्रम या हेलुसिनेशन में प्रकाशकीय नाडि़यों में कोई दोष नहीं होता केवल आंख के द्रश्य  में दोष होता है जो विभिन्न विचारों के द्वारा प्रभावित होता रहता है। विभ्रम दो प्रकार के होते हैं धनात्मक और ऋणात्मक। धनात्मक विभ्रम में भौतिक द्रश्यों  में गड़बड़ी नहीं होती वरन् देखने वाले की द्रष्टि विचार तरंगों द्वारा इतनी प्रभावित कर ली जाती है कि वह यथार्थ वस्तु से भिन्न स्वरूप देखना चाहती है। ऋणात्मक विभ्रम में भी द्रष्टि में दोष नहीं होता परंतु विचार तरंगों के तीव्र दबाव से, जिसे आटो सजेशन कहते हैं, वह वास्तविकता से भिन्न देखना चाहती है। बहुत विद्वानों ने  तथाकथित भूतों को धनात्मक विभ्रम और बहुतेरों ने ऋणात्मक विभ्रम भी कहा है। ये लोग कहते हैं कि भूतों को देखते समय आप्टीकल नर्व द्रष्टा को  धोखा देती है परंतु ऐंसा नहीं हैं यहां प्रधान भूमिका विचार तरंगों द्वारा ही प्रस्तुत की जाती है न कि भौतिक शरीर या मानसिक तंतुओं या एक्टोप्लाज्मिक सैलों द्वारा।
         कहा जाता है कि ‘‘ अभिभावनात् प्रेत दर्शनम्‘‘ । अभिभावना अर्थात्, तंतुओं द्वारा दी गई सूचना जिसमें मन और तंतु दोनों प्रभावित होते हैं, अतः दोषपूर्ण प्रतिक्रिया के कारण जो नहीं होता उससे भिन्न दिखाई देने लगता है। तंत्रिकाओं द्वारा दी गई सूचना स्वप्रेरित या वाह्य प्रेरित किसी भी प्रकार से हो सकती है। स्वप्रेरित सूचना का क्षेत्र सोचने वाले के मन के दायरे में ही होता है जबकि वाह्य प्रेरित सूचना में किसी अन्य शक्तिशाली मन द्वारा कमजोर मन को प्रभावित कर लिया जाता है। जब कमजोर मन को शक्तिशाली मन द्वारा अत्यधिक प्रभावित कर लिया जाता है तब या तो जो है वह नहीं दिखता अन्य कुछ दिखता है, या कुछ भी नहीं दिखता। दार्शनिक रूप में हम कह सकते हैं कि परमसत्ता द्वारा निर्मित यह संसार, नक्षत्र और सारा ब्रह्मांड भी धनात्मक विभ्रम है क्यों कि वह जो सोचता है वह व्यक्ति विशेष द्वारा देखा जाता है। व्यावहारिक जगत और भूतों में अंतर  यह है कि भूतों के केस में सूचना व्यक्तिगत होती है जबकि जगत के केस में सूचना बाहर से अर्थात् परमात्मा से आती है । परंतु जब व्यक्ति तथाकथित भूत देखते हैं  तो क्या वे धनात्मक विभ्रम हैं? नहीं वे नहीं हैं। संसार में जो कुछ हम देखते हैं वह ठोस, द्रव, वायु, अग्नि और आकाश  से इस प्रकार बना होता है कि वह अपने  आप संचालित होता है । यह आन्तरिक क्रिया परमपुरुष के द्वारा प्रेरित होती है, यह हो सकता है कि कुछ अस्तित्वों में भोजन पानी की आवश्यकता  न हो  परंतु जो ठोस और द्रव पदार्थों से मिलकर बना है अवश्य  ही भोजन पानी पर निर्भर करेगा क्यों कि भोजन मूलतः ठोस पदार्थ और पेय मूलतः तरल पदार्थों से निर्मित होता है। परंतु कोई चीज यदि ऊष्मा ,वायु और ईथर से बनी हो तो उसे भोजन की आवश्यकता नहीं होगी इसे ल्यूमनस बॅाडी या सूक्ष्म शरीर कह सकते हैं।

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