Friday 8 May 2015

8.25..योग

8.25..योग 
. आजकल लोगों को योग के संबंध में चर्चा करते बहुधा सुना जाता है, वे भी क्या करें उन्हें केवल यह बताया जाता है कि इस आसन से यह रोग ठीक हो जाता है और उससे वह। इसी के आकर्षण में कुछ आसनें  सीखकर योगी बन जाते  है, कभी कभी कोई प्रभाव न होने पर योग की आलोचना करने लगते हैं। ज्ञान की अपूर्णता अथवा त्रुटिपूर्ण ब्याख्या सदैव ही विवादों को जन्म देती है। इसीलिये कहा गया है कि ‘अ लिटिल नालेज इज द डेंजरस थिंग‘। अन्य धर्म या मतों के कुछ लोग योग पर अनावश्यक विवाद करते देखे गये हैं वह भी इसी का परिणाम है।  गीता में योग यथार्थतः आठ परतों का बताया गया है, यम, नियम, आसन, प्रणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। कुछलोग इसकी एक दो परतों को ही जानकर अपनी प्रकाण्डता का प्रदर्शन इस प्रकार करने लगते हैं कि वे स्वयं भटक जाते हैं और दूसरों को भी भटका कर समाज में अंधानुकरण के बीज बो जाते हैं जिससे समाज में विघटन होने लगता है और शांति छिन्न भिन्न होने लगती है।

वर्तमान में योग को केवल कुछ आसनों तक केन्द्रित कर रोगों को भगानें के साधनों के रूप में प्रदर्शित किया जा रहा है जो आवश्यक नहीं कि सबके लिये समान रूप से लाभदायी हो। उपरोक्त क्रम के अनुसार जब तक यम और नियम का पालन नहीं होता है, आसन सिद्ध नहीं हो सकता। आसन सिद्ध होने पर ही वह पूरा परिणाम देता है अन्यथा नहीं। यम के पांच प्रकार अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, और अपरिग्रह, हैं तथा नियम के पांच प्रकार शौच, संतोष, स्वाध्याय, तप और ईश्वरप्रणिधान हैं। सैकड़ों प्रकार के आसन हैं। प्राणायाम भी केवल एक ओर से सांस लेकर दूसरी ओर से छोड़ने का नाम नहीं। विभिन्न प्रकार के प्राणायामों  में सबसे महत्वपूर्ण बात होती है बीजमंत्र की, जो योग सिद्ध व्यक्ति संबंधित के संस्कारों केा ध्यान में रखते हुए सिखाता है। इसी क्रम में प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि तक पहुंचने की क्रिया का नाम योग कहलाता है। भारतीय दर्शन में इसे मन को नियंत्रित करने , आत्मसाक्षात्कार करने और जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने की विधि के रूप में स्वीकृत किया गया है। ‘‘योगः चित्तवृत्ति निरोधः‘’, ‘‘योगः कर्मसु कौशलम्,‘‘ ‘‘सर्व चिन्ता परित्यागो निश्चिन्तो योगुच्यते,’’ तथा ‘‘संयोगो योगो इत्युक्तो आत्मनो परमात्मनः’’ आदि, योग की चार प्रकार की प्रमुख परिभाषाओं में पूर्वोक्त आठों परतों से प्रशिक्षित होते हुए मन के ही अनुभवों को व्यक्त किया गया है। इस विवरण से स्पष्ट है कि योग का पालन करना औेर कराना इतना सरल नहीं है, इसके लिये द्रढ़ संकल्प चाहिए अतः जिन्हें यह अच्छी तरह समझ में आ गया है वे इस विषय पर अनावश्यक विवाद नहीं करें और इसे पूर्णता से समझ कर अपना और समाज का अधिकतम कल्याण करें।

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