Monday, 18 May 2015

8.7 मतवाद और मत

8.7: मतवाद और मत
8.7 मतवाद और मत 
पातंजल और साॅंख्य दोनों ही अनेक ‘‘पुरुषों‘‘में विश्वाश  रखते हैं और मानते हैं कि ब्रह्माॅंड प्रकृति के द्वारा निर्मित किया गया है, पर यह सही नहीं है क्योंकि मन के बिना भोग नहीं हो सकता और उनके अनुसार पुरुषों के पास मन नहीं होता अतः प्रकृति के द्वारा ब्रह्माॅंड के निर्माण करने से वे संतुष्ठ नहीं हो सकते। वे यह भी मानते हैं कि प्रकृति, पुरुष से अलग है यह भी सत्य नहीं है क्यों कि वह पुरुष की ऊर्जा है ठीक उसी प्रकार जैसे अग्नि और उसकी दाहिका शक्ति है जिन्हें पृथक नहीं किया जा सकता। साॅंख्य में  ईश्वर  नहीं है अतः निरीश्वरवाद कहलाता है पर पातंजल ईश्वर  मे विश्वाश  करता हैं पर ब्र्रह्म में नहीं अतः वह सैश्वरवाद  कहलाता है। भयबोध विश्वाशों   (sematic faith ) जैसे, मुस्लिम , क्रिश्चियन और ज्यू आदि में क्रिश्चियन की सामाजिक संरचना थोड़ी सी इन दोनों से भिन्न है पर इन का धार्मिक साहित्य पुरानी अरबी में है और हिब्रू उनकी समानान्तर भाषा है। इन में अन्य किसी धर्म या विश्वास के प्रति कोई आदर नहीं है। इनका कोई दर्शन  नहीं है केवल कट्टर धार्मिक सोच है, वे मानते हैं कि यह सब ईश्वर  के वाक्य हैं जिन्हें चुनौती नहीं दी जा सकती। इनमें ‘‘शैतान‘‘ का भय दिखाया गया है और स्वर्ग नर्क की अवधारणा को माना गया है। प्रोटेस्टेंटों, जिनका विचार कुछ भिन्न है , को छोड़कर  अन्य कोई भी आत्मा का परागमन स्वीकार नहीं करता। उनका विश्वास  है कि पैगम्बर या अवतारों द्वारा पाप को क्षमा किया जा सकता है। नर्क का भय दिखा कर तीनों में शोषण को ही प्रमुखता दी गयी है।
अब, यदि उनका धार्मिक साहित्य ईश्वर  के द्वारा सीधे ही कहा गया है और वे मानते हैं कि ईश्वर  का कोई आकार नहीं है तो यह कैसे संभव है, क्यों कि शब्दों को कहने के लिये गला और मुंह चाहिये जो आकार के बिना संभव नहीं है अतः या तो उनका ईश्वर  निराकार नहीं है या फिर उनका साहित्य ईष्वर के शब्द नहीं है। इन तीनों में ब्रह्माॅंड के उत्पन्न करने का कारण स्पष्ट नहीं किया गया है। वे केवल मानते हैं कि संसार ईश्वर  की पूजा के लिये बनाया गया है पर यह भी कहते हैं कि ईश्वर  दयालु है। जब ईश्वर  दयालु है तो उसकी कृपा पाने के लिये वह अपनी पूजा क्योें कराना चाहते है? यह तो उसकी साधारण मनुष्य जैसी प्रकृति ही मानी जायेगी जो कि वाॅंछनीय नहीं है।  क्रिश्चियन कहते हैं कि जीसस ईश्वर  के पुत्र हैं, परतु जब उनका ईश्वर  निराकार है तो उनका पुत्र कैसे हो सकता है, इस तर्क का वे कोई उत्तर नहीं दे पाते। तीनों धर्म यह मानते हैं कि शैतान वह सब करता है जो ईश्वर  के कार्य के विपरीत होता है जिसका सीधा अर्थ है कि शैतान भी उतना ही शक्तिशाली है जितना ईश्वर । इस प्रकार दो पृथक शक्तियों का अस्तित्व पाया जाना स्वीकृत हुआ अतः इस प्रकार के ईश्वर को   सर्वशक्तिमान नहीं कहा जा सकता। इसलिये शैतान का पृथक अस्तित्व माना जाना अतार्किक है।
यह भी माना गया है कि शैतान का अस्तित्व संसार के निर्माण के पहले से ही है अर्थात शैतान का निर्माण ईश्वर  के द्वारा नहीं हुआ है वह नकारात्मक शक्ति है अतः दो प्रकार के  ईश्वर प्राप्त होते हैं एक अच्छा और दूसरा बुरा। अब प्रश्न  उठता है कि क्या  ईश्वर वहाॅं पाया जा सकता है जहाॅं शैतान उपस्थित हो? इस प्रकार दोनों प्रकार के कथन एक दूसरे के विपरीत हो जाते हैं। इन मतों के अनुसार जो ईश्वर की पूजा नहीं करता उसे नर्क में फेक दिया जाता है जहाॅं से कभी वापस नहीं आ सकते, यह भी अतार्किक है क्योंकि किसी को भी हमेशा  के लिये बंधन में नहीं रखा जा सकता। वे कहते हैं कि संसार को ईश्वर ने बनाया पर यह नहीं बताते कि किस पदार्थ से बनाया, इस प्रकार  ईश्वरऔर संसार दो अलग अलग अस्तित्व हुए। अब यदि संसार  ईश्वरका हिस्सा नहीं है तो वह  शैतान का हिस्सा हुआ, पर शैतान  को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर स्रष्टि का केन्द्र नहीं माना गया है अतः संसार उसका हिस्सा नहीं हो सकता। इस प्रकार तीन  ईश्वर हुए , एक तो असली दूसरा शैतान और तीसरा वह पदार्थ जिससे संसार का निर्माण हुआ। इन धर्मों का एक समान उद्गम भयपूर्ण नर्क से हुआ है जो इनके अस्तित्व को बनाये रखने का कारण है।
इस विवरण से स्पष्ट होता है कि ये सब ‘मत‘ या विचारधारायें ही है इन्हें दर्शन  की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।

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