Sunday, 5 April 2015

कुछ प्रश्नोत्तर ( प्र- 18 से आगे ----)


कुछ प्रश्नोत्तर ( प्र- 18 से आगे ----)
19. क्या सगुण ब्रह्म, काल घटक से ऊपर हैं?
-सगुण ब्रह्म गुणों के नियंत्रक हैं पर उनके ऊपर नहीं। अतः वह देश , काल और पात्र, जिनको प्रकृति ने चेतना के भीतर बनाया है, की सापेक्षिकता का नियंत्रण करता है और प्रकृति भी सगुण ब्रह्म के अनन्त विस्तार के बीच ही सक्रिय रहती है। जीवों से भिन्न सगुण ब्रह्म गुणों से बद्ध नहीं होता परंतु उनसे जुड़ा रहता है। अतः यह कहना अधिक उचित है कि सगुण ब्रह्म का मापन संभव नहीं क्योंकि अनन्त ‘काल‘ उसके भीतर ही निवास करता है।
20. मृत्यु के बाद, अपने संस्कारों के अनुसार जीवों को उचित भौतिक संरचना प्राप्त करना कैसे संभव है?
क्योंकि कहा जाता है कि प्रकृति का सत्वगुण इसे निर्धारित करता है, फिर भी अंध रजोगुण को उचित भौतिक संरचना प्राप्त कर पाना कैसे संभव है?
-नयी संरचना का निर्धारण रजोगुण करता है पर वह सगुण ब्रह्म से स्वतंत्र नहीं है, वह परम चेतना के अहमतत्व का बंध है। अतः यह कहना उचित होगा कि परम चेतना ही रजोगुण के माध्यम से नवीन संरचना प्राप्त करती है। नये शरीर का निर्धारण किसी अंध बल द्वारा नहीं पुरुषोत्तम के द्वारा किया जाता है।

21. यदि संस्कारों के पूर्णक्षय होने से निर्वाण प्राप्त होता है तो क्या नास्तिक को मुक्ति,मोक्ष प्राप्त हो सकता है?

-संस्कारों के पूर्णतः नष्ट होने पर मन भी नष्ट हो जाता है, मुक्ति का अर्थ है सभी बंधनों से मुक्त होना और मोक्ष का अर्थ है साक्षित्व से भी मुक्त होना। यदि नास्तिक नष्ट होता है तो उसके मुक्ति या मोक्ष का प्रश्न  ही पैदा नहीं होता क्योंकि वह ब्राह्मिक मन या परमचेतना में विश्वास ही नहीं करता।

22. जीवात्मा और परमात्मा में क्या अंतर है?

-यद्यपि जीवात्मा और परमात्मा वास्तव में एक ही हैं केवल उनकी उपाधि में अंतर है। जीवात्मा की उपाधि सीमित है। समग्र साक्षित्व का समूहीकृत संचालन परमात्मा कहलाता है। दर्शनशास्त्र  में लघु ब्रह्मांड के ऊपर परमात्मा का परावर्तन जीवात्मा कहलाता है। इसे अणुअक्षर कहना उचित होगा। मानसिक विस्तार के स्तर के आधार पर  इकाई मन पर परमात्मा का परावर्तन बदलता रहता है। दर्शन के विंदु से अणुअक्षर और जीवात्मा में अंतर हो सकता है परंतु संचालन स्तर पर उनमें अंतर नहीं किया जा सकता। अतः जीवात्मा को अणुअक्षर कहा जा सकता है, साधना करके परमात्मा को अपने सभी मानसिक प्रयत्न सौंपते जाने पर जीवात्मा परमात्मा के चिंतन में स्थापित हो जाता  है।

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