प्रश्नोत्तर ( प्र 54 से आगे---)
55. स्मृति का आधार क्या है?
-पहले से देखी हुई बस्तुओं का पुनः स्रजन करना स्मृति कहलाता है, एक बार चित्त के द्वारा अनुभव की गई बस्तु से निलने वाले कंपन नर्व तंतुओं द्वारा प्रिंट कर लिये जाते हैं, चित्त में यह अनुभव बीज के रूप में रहता है। नर्वसैलों में अनुकूल कंपन और चित्त में वही भावना प्रेरित करने पर कोई व्यक्ति स्मृति का अनुभव करता है। इस लिये स्मृति का आधार मस्तिष्क नहीं चित्त है। देखी गई वस्तु के कंपन नर्वतंतुओं में कुछ दिनों तक बने रहते हैं फिर क्षीण हो जाते हैं। कुछ लोग मानते हैं कि स्मृति नर्व सेलों में रेखा के रूप में संचित रहती है, पर यदि यह होता तो ब्रेन उसे जगह नहीं दे पाता क्योंकि जिनके वहुआयामी विचार होते हैं उनका क्रे नियम जटिल और बड़ा होता है ताकि उचित कंपन करने की व्यवस्था बनाये रखी जा सके।
56. क्या भूत सचमुच होते हैं?
- वे विचित्र आकार जिन्हें हम भूत कहते हैं मुख्यतः कल्पना के टुकड़े हैं। जब मन कमजोर या असुरक्षित अवस्था में होता है तब पूर्व में की गई कल्पनाओं में निर्मित किये गये प्रतिबिंव वास्तविक प्रतीत होने लगते हैं। जब काममय कोष सो जाता है और मनोमय कोष जागते हुए कुछ सोचता है तो वे कंपन वास्तविक लगने लगते हैं और जागने पर हम उन्हें स्वप्न कहते हैं। इसी प्रकार तीब्र भय, सम्मोहन, अपरिपक्वता अथवा किसी रिपु या पाश के अत्यधिक प्रदर्शन से काममय कोष अस्थायी रूप से अगले उच्च कोष में निलंबित हो जाता है तो कल्पित की गई बस्तुएं या रूप वास्तव में दिखाई देने लगते हैं। इसी प्रकार कई लोग देवी या देवता भी देखते हैं जिनका कोई अस्तित्व नहीं है। हिपनोटिज्म में भी व्यक्ति का काममय कोष बाहरी हिपनोटिस्ट की कमांड से सुप्तावस्ता में आ जाता है और वह कल्पित चीजों को वास्तव में देखने लगता है। जिनके कमजोर मन होते हें वे अपने रिश्तेदारों के भूत /देवी ,देवता के रूप देखने लगते हैं। इस प्रकार के द्रश्य , स्व या वाह्य धनात्मक विभ्रम होते हैं। यहां यह स्पष्ट करना उचित होगा कि वे, जो द्रढ़तापूर्वक यह कहते हैं कि उन्होंने भूत को देखा है वे गलत नहीं कहते हैं, यह ऋणात्मक या धनात्मक विभ्रम का मायाजाल होता है जिससे वे इन चीजों को देखते हैं। यह भी संभव है कि द्रढ़ इच्छाशक्ति के व्यक्ति के मानसिक एक्टोप्लाज्म किसी देह रहित आत्मा को अपने संस्कारों के अनुरूप जबरन शरीर देकर भूत का निर्माण कर दें। तथाकथित भूत का अस्तित्व संबंधित व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता हैं, इसप्रकार का भूत सामान्यतः कहे जाने वाले भूतों से भिन्न होता है। अपने मानसिक एक्टोप्लाज्म की सहायता से किसी आत्मा को जबरदस्ती शरीर देना बुरी बात है, अच्छे व्यक्ति किसी को भूत दिखाने के लिये कभी ऐंसा नहीं करते। वे, जो सोचते हैं कि भूत समय समय पर उन्हें अपने एक्टोप्लाज्म की सहायता से दिखाई देते हैं जो उनकी इच्छायें पूरी करते रहते हैं, भी गलत हैं। वास्तव में भूत उनके मानसिक एक्टोप्लाज्म से उत्पन्न होते हैं उनकी कोई स्वतंत्र आत्मा नहीं होती। जिस व्यक्ति के एक्टोप्लाजम ने भूत निर्मित किया होता है उसकी आत्मा भूत की भी साक्षीसत्ता होती है।
57. किसी को भूत या देवी देवता लग जाना क्या है?
-भूत या देवी देवता लग जाना भी वैसा ही है जैसा भूत को देखना। अंतर केवल यह है कि पुरुष या महिला जिसे भूत लगे होते हैं वह स्वयं को हिप्नोटाइज कर लेता/ती है और कल्पित आकार में अवशोषित हो जाता/ती है और अपने को देवी देवता या भूत होने का विश्वास कर लेता/ती है और अपने संस्कारों के अनुसार वर्ताव करने लगता/ती है। हिप्नोटिक अवस्था में विचार कंपन की ऊर्जा और ज्ञान, सामान्य अवस्था की तुलना में अधिक होती है इसलिये हिप्नोटाइज्ड व्यक्ति नई बाते जानलेता है और विचित्र प्रकार का व्यवहार करता है। इससे सामान्य स्थिति में वापस लाने की विधि भी वैसी ही है जैसी नाड़ी तंतुओं को सामान्य करने में प्रयुक्त की जाती है। ओझालोग और डाक्टर यही करते हैं। अंतर केवल यह है कि डाक्टर लोग अपनी सामान्य क्रियाओं को काम में लाते हैं जबकि तथाकथित ओझालोग अज्ञान और भय निर्मित करने वाली कहानियां सुनाकर और कुछ मंत्र पढ़कर करते हैं। हिप्नोटाइज किया गया रोगी विशेष प्रकार के आदेशों से मानवेतर कार्य कर सकता हे जैसे पेड़ की शाखा तोड़ना आदि। वास्तव में उसमें यह योग्यता एक्टोप्लाज्मिक मन के प्रचंड रूप से केन्द्रीकरण हो जाने से आती है। लोग सोचते हैं कि रोगी के शरीर से भूत ने बाहर निकलकर पेड़ की डाली तोड़ डाली। प्रेरित व्यक्ति की इस अवस्था में काममय और मनोमय कोष अपनी स्वतंत्र रूप से कार्य करने की क्षमता खो देते हैं।
58. धरना में उत्तर या दवा की जानकारी कौन प्राप्त करता है?
-एकबार चेतन और अवचेतन मन अक्रिय हो जाते हैं तो सर्वज्ञाता कारण मन द्वारा उत्तर या दवा की जानकारी जुटाई जाती है। किसी विशेष उद्देश्य , सच्चाई और उचित तरीके से चिंतन किये जाने पर एक्टोप्लाज्मिक मन वह आकार ग्रहण कर लेताहै। धरना के समय काममय और मनोमय कोष आंशिक रूप से निलंबित हो जाते हैं और चाहा गया उत्तर कारण मन से उत्पन्न होकर उसे मिल जाता है, जैसे विशेष प्रकार के स्वप्न में। इस प्रकार यह पूर्णतः मनोवैज्ञानिक कार्य है किसी देवी देवता का इसमें कोई रोल नहीं है। रोग के ठीक होने या प्रश्नों के उत्तर पाने की प्रभाविकता इस बात पर निर्भर करती है कि मन को किस स्तर पर केन्द्रित किया गया है।
59. झाड़फूंक क्या है?
-किसी भय या गहरे मानसिक आघात के समय काल्पनिक भूत आदि के चिंतन करने पर शरीर का भान न रहना भूत लगना कहलाता है। इस समय प्रेरित व्यक्ति अपनी कल्पना के भूत से एकता की भावना स्थापित कर लेता है। काममय कोष निलंबित हो जाता है और मनोमय कोष स्वतंत्रता पूर्वक कार्य करने लगता है। इस अवस्था में ओझा इन कोषों को सक्रिय करने के लिये अनेक विधियां प्रयुक्त करता है, जैसे तीखी वस्तुओं के धुएं सुंघाना, जोर से हाथ पैर में चोट पहुंचाना जिससे नर्वस सिस्टम सक्रिय हो जावे क्योंकि वे जानते हैं कि एक बार नर्वस सिस्टम सक्रिय हो गया भूत अपने आप भाग जावेगा। पहले वे रोगी की मानसिक और भौतिक दशा का अध्ययन करते हैं फिर उसके रिश्तेदारों की आर्थिक स्थिति का। फिर वे विभिन्न भूतों की कहानियां सुनाकर अपना प्रभाव जमाने और पैसा ऐंठने का कार्य करते हैं। वे स्थानिक भाषा में कुछ मंत्र भी उच्चारित करते हैं ताकि भूतों में विश्वास बना रहे। वास्तव में भूत मंत्रों से नहीं वल्कि नर्वस संरचना के सामान्य हो जाने पर भागता है। भूतों से प्रेरित लोगों की कई श्रेणियां होतीं हैं, कुछलोग चिंता या भय, के कारण प्रेरित होते हैं और कम बात करते हैं, कुछ का मन कमजोर होता है, कुछ अन्याय और अपमान के कारण यह अनुभव करते हैं और अपनी भावनाएं नहीं बता पाते, कुछ भौतिक रूप से अविकसित होते हैं। हिस्टीरिया जो कि निश्चित ही बीमारी है, भी इसी प्रकार उत्पन्न होती है और उसका इलाज भी वैसा ही है।
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