Saturday 11 April 2015

प्रश्नोत्तर ( प्र- 42 से आगे---)

 प्रश्नोत्तर ( प्र- 42  से आगे---)

43. संचर प्रक्रिया में किसी संरचना में आन्तरिक टक्करें अधिक होती हैं या वाह्य?
-चूंकि परमचेतना की गति जड़ता को बढ़ाने की ओर होती है अतः आंतरिक टक्करें अधिक होती हैं। परम सत्ता का भौतिक रूपान्तरण ऊर्जा में और ऊर्जा का पदार्थ में। अतः अधिक निकटता हो जाने के कारण परमाणुओं में अधिक टक्करें होती हैं।
44. क्या व्याप्ति और स्थिति समय के अधिकार क्षेत्र में होती हैं?
-साक्ष्य देने की क्षमता वाला अस्तित्व, कारण के नियम को पार कर जाता है। जिस किसी के पास     व्याप्ति और स्थिति की योग्यता होती है वह समय से बंधा होता है। जब मन परिणाम का कारण खोजने का प्रयास करता है और असफल हो जाता है तो मन की यह अवस्था मध्यानुभविक अवस्था कहलाती है।
45. भौतिकवाद के मनोवैज्ञानिक दुर्गुण क्या हैं?
-मन का लक्षण अनन्त की चाह है। किसी विशेष  विचार पर केन्द्रित होकर वह इस लक्ष्य को पा सकता है। चूंकि भौतिक वस्तुएं सीमित हैं अतः जिन्होंने जीवन का लक्ष्य इन्हें बना लिया है वे परिणामतः कुंठित होंगे। धन और भौतिक वस्तुओं को अनन्त रूप से भोगा नहीं जा सकता अतः उन्हें आनन्द प्राप्त नहीं होता। बल्कि उनके स्वार्थ अन्य लोंगों के साथ टकराने से संघर्ष बना रहता है। अतः ऐसे लोगों के मन को भौतिकवाद से दूर करने के लिये लगातार दवाव बनाये रखना होगा क्योंकि असंतुष्ट होने पर वे क्रांतिकारी मार्ग पर चल सकते हैं। भौतिकवादी भौतिक उपभोग पर ही जोर देते हैं अतः स्वार्थवश  वे एक दूसरे को संदेह की द्रष्टि से ही देखते हैं। आध्यात्मिकता के विना नैतिकता में द्रढ़ता नहीं आ सकती।
46. कर्मकांडीय धर्म और आध्यात्मिक साधना में क्या अंतर है?
-अधिकांश  कर्मकांडीय धर्म भौतिक सुख सुविधाओं के भोग करने को ही प्रोत्साहित करते हैं। मनुष्य भी भौतिक वस्तुएं नाम यश  और धन चाहते हैं कभी कभी तो इच्छा पूरी होने के बाद भी संचित रखने के लिये ही भौतिक द्रव्य के अर्जन में लगे रहते हैं। यह प्रेय का मार्ग है। इस पथ पर चलने वाले अज्ञानी लोग नहीं समझ पाते कि वे अपनी इच्छाओं की पूर्ति हमेशा  कर पाऐंगे। केवल कुछ कर्मकांडी और सामाजिक शोषक ही लाभान्वित होते हैं। आध्यात्मिक साधना व्यक्तिगत और सामूहिक प्रक्रिया है जो सर्वांगीण विकास की ओर ले जाती है। यह निवृत्ति का मार्ग है। मुक्ति का अर्थ संसार से भागना नहीं है वरन् संसार को आध्यात्मिक द्रष्टिकोण से देखना है। इसमें नाम, यश , शोषण और प्रदर्शन  की कहीं भी गुंजायश  नहीं है। कर्मकांडीय धर्मो में परस्पर भेद होने से प्राणघातक लड़ाईयां भी होती रहती है। आध्यात्मिक साधना के लिये जाति, राष्ट्रीयता, भाषा या धर्म में कोई भेद भाव नहीं होता यह एकवचनीय होता है और आध्यात्मिक कहने पर ही सब का मिलन हो जाता है जबकि रिलीजन या धर्म कोई धर्म नहीं वह कर्मकांडों का संग्रह है।
47. आदर्श  को प्रतिस्थापित करने के लिये सर्वोत्तम तरीका क्या है- दूसरों के आदर्शों  को गलत सिद्ध करना, या उन्हें आमने सामने आलोचित करना या रचनात्मक कार्य करना?
-रचनात्मक कार्य द्वारा सूक्ष्म आदर्शों  को स्थापित करना सबसे अच्छा है। दूसरों के आदर्शों  को आलोचित करने से तात्कालिक जीत से प्रसन्नता भले हो लेकिन समाज को उससे कुछ भी नहीं मिलता। सत्य यह है कि आलोचना करने वालों का मन हमेशा  आलोचना के विषय पर ही केन्द्रित रहता है।

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