(ब) वैज्ञानिक पक्ष:
आधुनिक वैज्ञानिकों ने प्रकृति को समझने का बहुत प्रयास किया है और पिछले 500 वर्षों में उन्होंने उसके अनेक रहस्यों का पता लगाया है और अभी भी अनेक रहस्य, रहस्य ही बने हुए हैं। उनके सभी प्रयोग विश्लेषण विधियों पर आधारित हैं। पदार्थ को विश्लेषित कर उन्होंने पाया कि यह तो ऊर्जा का ही घना रूप है। पदार्थ का सबसे सूक्ष्म भाग, जिसे उन्होंने परमाणु (atom) कहा, में प्रचंड ऊर्जा भरी पाई और एटमबम बना डाला। उसे तोड़कर इलेक्ट्रान और अन्य आवेशित कणों की खोजों और परमाणु की ऊर्जा से प्राप्त विद्युत, चुंबक, ऊष्मा आदि अन्य ऊर्जाओं की सहायता से न केवल उद्योगों के क्षेत्र में क्रान्ति ले आये हैं वरन् चिकित्सा और अन्तरिक्ष में भी घुसपैठ कर ली है। भौतिक ऊर्जा के साथ साथ जैविक ऊर्जा के संबंध में भी उन्होंने प्रगति की है पर वे यह अभी भी नहीं जान पाये हैं कि इसे किसने उत्पन्न किया है। वे केवल प्रकृति को ही सर्वोपरि मानते हैं उसके नियंता के संबंध में वे मौन हैं। ब्रह्माॅंड की उत्पत्ति के संबंध में वे बिगबेंग ( big bang ) सिद्धान्त को मानते हैं पर यह नहीं बता पाते कि यह बिगबेंग किसने किया। इस सिद्धान्त के अनुसार cosmos अर्थात् ब्रह्माॅड, 13.8 बिलियन वर्ष पहले बिग बेंग के साथ 10-37 सेकेंड में उत्पन्न हुआ जिसका वर्तमान में द्रश्य व्यास 93 बिलियन प्रकाश वर्ष है। पूरे ब्रह्माॅंड में पदार्थ का परिमाण 3 से 100x1022 तारों की संख्या बराबर है जो 80 बिलियन गेलेक्सियों में वितरित है। वैज्ञानिक यह भी मानते हैं कि बिग बेंग की घटना किसी विस्फोट की तरह नहीं हुई बल्कि 1015 केल्विन ताप के विकिरण के साथ स्पेस टाइम में फैलता हुआ अचानक ही अस्तित्व में आया। इसके तत्काल बाद 10&29 सेकेंड में स्पेस का एक्पोनेशियल विस्तार 1027 अथवा अधिक के गुणांक में हुआ। जो कि कास्मिक इन्फ्लेशन कहलाता हैं । ब्रह्माॅड का ताप 10,000 केल्विन से अधिक सैकड़ों हजार वर्ष रहा जिसे रेसेड्युअल कास्मिक माइक्रोवेव बेकग्राऊंड कहते हैं। यूनीवर्स का कुल घनत्व, अर्थात् डार्क एनर्जी, वर्ष 2013 में की गयी गणना के अनुसार 68.3 प्रतिशत पाया गया है और डार्कमैटर घटक , द्रव्यमान ऊर्जा घनत्व का 26.8 प्रतिशत। शेष 4.9 प्रतिशत में सभी सामान्य पदार्थ, दिखाई देने वाले परमाणु, रासायनिक तत्व गैस और प्लाज्मा , द्रश्य ग्रह, तारे और गेलेक्सियाॅं हैं। इस ऊर्जा घनत्व में बहुत कम परिमाण लगभग 0.01 प्रतिशत कास्मिक माइक्रोवेव बेकग्राऊंड रेडियेशन भी होता है और 0.5 प्रतिशत से भी कम रेलिक न्यूट्रिनो होते हैं। अभी इनकी मात्रा भले ही कम हो पर बहुत पिछले काल में ये पदार्थ 3200 से भी अधिक रेड शिफ्ट में अपना अधिकार जमाये थे।
ब्रह्माॅंड की स्थानिक वक्रता शून्य के निकट है। हमारे मस्तिष्क में पाये जाने वाले न्यूरानों की संख्या ब्रह्मांड के सभी तारों की संख्या से अधिक है। जीवन की उत्पत्ति के संबंध में वैज्ञानिक मानते हैं कि जल के भीतर जीव उत्पन्न हुए पहले एक कोशीय और क्रमागत रूपसे बहुकोशीय जीव। डारविन के सिद्धान्त के अनुसार इसी क्रम में अति उन्नत जीव मनुष्य हुए हैं। पृथ्वी के अलावा अन्य गेलेक्सियों के किन्हीं सौर मंडल के ग्रहों में जीवन की संभावनायें भी बताई गयीं हैं। ये जीव मनुष्य की तरह या मनुष्य से अधिक उन्नत या अन्य प्रकार के भी हो सकते हैं, यह भी कहा गया है। तारे और गेलेक्सियाॅं मरते हुए ब्लेक होल में लय हो जाते हैं और अंततः ब्लेक होल भी समाप्त हो जाता है , इसी प्रकार जीव भी मनुष्य होकर अंततः मर जाता है, इसके आगे क्या होता है विज्ञान को इसकी कोई जानकारी नहीं है। वैज्ञानिकों का कहना है कि 1040 वर्ष बाद पूरे ब्रह्मांड में केवल ब्लेक होल ही होंगे। वे हाकिंग रेडिएशन के अनुसार धीरे धीरे वाष्पीकृत हो जावेंगे। अपने सूर्य के बराबर द्रव्यमान वाला एक ब्लेक होल नष्ट होने में 2x1066 वर्ष लेता है, परंतु इनमें से अधिकांश अपनी गेलेक्सी के केेन्द्र में स्थित अपनी तुलना में अत्यधिक द्रव्यमान के ब्लेक होल में सम्मिलित हो जाते हैं। चूंकि ब्लेक होल का जीवनकाल अपने द्रव्यमान पर तीन की घात के समानुपाती होता है इसलिये अधिक द्रव्यमान का ब्लेक होल नष्ट होने में बहुत समय लेता है। 100 बिलियन सोलर द्रव्यमान का ब्लेक होल नष्ट होने में 2x1099 वर्ष लेगा । ब्रह्मांड, गेलेक्सियों को समेटे ऐंसा गोला है जो लगातार फैलता जा रहा है। सबसे दूरस्थ गेलेक्सी सबसे तेज चलती है अतः उसकी लंबाई की दिशा में संकुचन हो जाने के कारण केन्द्र में खडे़ अवलोकनकर्ता के लिये वह छोटी दिखाई देती है।
इस प्रकार ब्रह्मांड में पाये जाने वाले आकाशीय पिंडों अर्थात् ग्रहों, सूर्यों, गेलेक्सियों, ब्लेकहोलों या ऊर्जा अर्थात् प्रकाश , विद्युत, रेडियो, और ब्लेकएनर्जी और पृथ्वी जैसे ग्रहों के जीवधारी आदि सभी स्पेस और समय के अत्यंत विस्तारित क्षेत्रों में अपना साम्राज्य जमाये हुए हैं परंतु फिर भी वे अनन्त नहीं हैं अमर नहीं हैं। अपने यूनीवर्स की तरह स्पेस में अन्य यूनीवर्स (universe) हो सकते हैं इसप्रकार मल्टीवर्स सिद्धान्त (multiverse theory) के समर्थन में और उसके विपरीत दोनों प्रकार के वैज्ञानिक वादविवाद कर रहे हैं। यह माना जा रहा है कि बुलबुले के आकार के सात यूनीवर्स हो सकते हैं जिनके स्पेस, टाइम अलग होंगे और उनके भौतिक नियम और स्थिरांक तथा विमायें या टोपोलाजी (topology) भी भिन्न होंगी। परंतु प्रायोगिक प्रमाणों के अभाव में ये विचार अभी एक मत से स्वीकार नहीं किये जा पा रहे हैं पर भविष्य में इस रहस्य से अवश्य पर्दा उठ सकता है।
स्पष्ट है कि दार्शनिक और वैज्ञानिक दोनों पक्ष यह मानते हैं कि यह ब्रह्माॅंड अमर नहीं है । इसके पदार्थ और कुछ नहीं ऊर्जा का सघन रूप ही हैं जिसकी सहायता से हमें आत्मोन्नति करना चाहिये। वैज्ञानिक इसकी उत्पत्ति का श्रोत नहीं जानते और न ही यह बता पाते हैं कि अंत में क्या बचेगा, पर दार्शनिक पक्ष में स्पष्टतः उसके उद्गम और अंत की व्याख्या की गई है, और हमारे भौतिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक तीन प्रकार के विकास स्तरों को मान्यता दी गयी है । वैज्ञानिक अधिकतर भौतिक और कुछ सीमा तक मानसिक विकास की बातें करते हैं पर आध्यात्मिक स्तर पर मौन हो जाते हैं क्योंकि इस क्षेत्र के मान्यता प्राप्त सिद्धान्तों को वे प्रयोगशाला में प्रदर्शित नहीं कर पाते। आध्यात्मिक जगत में उच्च स्तर प्राप्त विद्वानों का मानना है कि उनके सिद्धान्तों को परखने के लिये भौतिक प्रयोगशालाओं की नहीं मानसिक प्रयोगशालाओं की आवश्यकता होती है । जिन्होंने मानसिक स्तर को ऊंचा बनाकर अपनी मानसिक तरंगों की वक्रता कम करके सरलरेखा जैसी बना ली हैं वे यह आध्यात्मिक सिद्धान्त सरलता से समझ सकेंगे क्योंकि उस परम सत्ता की मानसिक तरंग भी सरल रेखा है अर्थात् तरंग दैर्घ्य अनन्त है और वह हमारे अस्तित्व बोध का साक्षी है। इस प्रकार हमारे मैंपन के पीछे छिपी साक्षी स्वरूप सत्ता का अनुसंधान करना वैज्ञानिकों का लक्ष्य होना चाहिये।
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