Tuesday, 7 April 2015

प्रश्नोत्तर ( प्र-27 से आगे ----)


प्रश्नोत्तर ( प्र-27 से आगे ----)
28. क्या किसी पेड़ में एक से अधिक ‘‘आत्माएं‘‘ हो सकती हैं?
-सूक्ष्म  सत्ता में चाहे उसका मन विकसित हो अविकसित या अर्धविकसित, चेतना अथवा जीवात्मा साक्षी सत्ता के रूप में रहती है। चूंकि पेड़ बहुकोषीय आर्गेनिज्म है, और प्रत्येक विकसित या अविकसित या अर्धविकसित मन के साथ उसकी जीवात्मा साक्षी स्वरूप साथ रहती है, अतः एक पेड़ में अनेक जीवात्माओं का साक्ष्य संभव है। इसी प्रकार मानव शरीर और अन्य आर्गेनिज्मस् में समग्र चेतना के साथ साथ विभिन्न कोषों से संलग्न असंख्य जीवात्मायें होती हैं।
29. सजीव और निर्जीव में अंतर क्या है?
-इकाई मन को प्रकृति के बंधन में रहने वाली चेतना के नाम से वर्णित किया जा सकता है, और सामान्यतया निर्जीवों को हम उस चेतना के नाम से वर्णित करते है जिसमें प्रकृति का अपेक्षतया अधिक बंधन होता है। विकसित जीवधारी पूर्णतः ब्राह्मिक मन के द्वारा नियंत्रित नहीं होते बल्कि कुछ हद तक वे अपने इकाई मन से भी मार्गदर्शन  ले सकते हैं। निर्जीवों की तुलना में इकाई मन पर प्रकृति का जड़ात्मक बंधन कम होता है अतः प्रतिसंचर के प्रवाह में इकाई मन अधिक उन्नत होता है। जीवात्मा, इकाई मन पर परम चेतना का परावर्तन होती है अतः हम कह सकते हैं कि चेतना, मन और निर्जीव सभी एक ही सामग्री से बनी होती हैं केवल प्रकृति के बंधन की मात्राओं का अंतर होता है।
30. मूर्तिपूजा दोषपूर्ण क्यों है?
-मूर्ति, सीमित प्रारंभ और अंत वाले मानव मन की कल्पना से बनाई जाती हैं जबकि परमब्रह्म का न कोई प्रारंभ है और न अंत। इसलिये यह मानव कल्पना की सीमित रचना जीवधारियों की मुक्ति का आधार नहीं हो सकती। इसके अलावा ये मूर्तियां पत्थर लकड़ी या धातुओं से बनाई जातीं है जो स्वयं पंच भूतों से बनी होती है अतः इन जड़ बस्तुओं का चिंतन, निर्गुण ब्रह्म का ध्यान नहीं करा सकता बल्कि वह अधःपतन की ओर ले जावेगा।

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