Monday 13 April 2015

प्रश्नोत्तर (प्र- ५० से आगे ----)


प्रश्नोत्तर (प्र- ५० से आगे ----)
51.  रचनात्मक कार्य और ब्रह्म साधना में अधिक महत्पूर्ण क्या है।?
-जीवधारियों का उद्देश्य  ब्रह्म साधना है। नहाना, खाना और सोेने के समान रचनात्मक कार्य भी ब्रह्म साधना का भाग है। इसलिये ब्रह्म साधना का अधिक महत्व है।
52. समाज के सभी स्तरों में , सभी देशों  में,  प्रत्येक समय, एक ही अर्थशास्त्रीय सिद्धान्त लागू किया जा सकता है?
-नहीं, समाज के आदर्श  और प्रणाली को समय, स्थान और पात्र  और समाज के सर्वांगीण विकास के अनुसार निर्मित किया जाना चाहिये क्योंकि किसी एक स्थान समय और व्यक्ति के अनुसार जो उपयोगी है वह अन्य स्थान, समय और पात्र के अनुसार बिल्कुल व्यर्थ हो सकता है। समाज गतिशील होता है अतः प्रगति के अनुसार पुराने सिद्धान्त पुरावशेष माने जाते हैं। मार्कस् या अन्य किसी भी सिद्धान्त को लें, उसे अंधानुकरण
 नहीं किया जा सकता क्योंकि किसी समय और पात्र के आधार पर ही किसी सिद्धान्त को अनुकूलतम माना जा सकता है।
53. क्या आनन्द पथ (path of bliss) के अलावा मानव के संयुक्त प्रयास को बनाये रखने का कोई विकल्प नहीं है?
-एकीकृत मानव समाज का होना सभ्यता के विकास की पहली शर्त है। सामूहिक जीवन की इच्छा ही समाज का अर्थपूर्ण अस्तित्व दे सकता है। समाज गतिशील होता है और उसकी आंतरिक गतिशीलता ही उसकी प्रगति का निर्धारण करती है। जब व्यक्तियों का एक समूह एकसमान आदर्श  से बंधा होकर किसी विशेष रास्ते पर चलता है और अपने साथ अन्यों को भी सुख दुख में भागीदार बनाता है तो उसकी ही वास्तविक प्रगति होती है, वे ही सफल कहला सकते हैं। इस, देश  काल और पात्र के तेजी से बदलने वाले संसार में कोई विशेष आर्थिक ,राजनैतिक या धार्मिक संरचना मानवता का लक्ष्य नहीं हो सकती। मनुष्य की प्रगति तभी होती है जब वह देश  काल पात्र से ऊपर परम ब्रह्म को जीवन का लक्ष्य माने और उसकी ओर सांसारिक काम करते हुए आगे बढ़ता जावे। आनन्दपथ  प्रगति का मार्ग है, मानव अस्तित्व और सभ्यता के संरक्षण के लिये वही एकमात्र विकल्प है। वाह्य कर्मकांड और तथाकथित धर्माे, रिलीजनों में विजातीय, स्वजातीय और स्वगत भेद होने के कारण सापेक्षिक घटकों के साथ मानवता में डोगमा और संघर्ष के साथ अवमंदन को आमंत्रित करते हैं अतः ये मानवता में शांति स्थापित नहीं कर सकते।
54. क्या मन और मस्तिष्क की बीमारियां एक सी होती हैं?
-नहीं, जड़ मस्तिष्क सूक्ष्म मन का वाहन है। वह मन के भीतरी विचारों और भावनाओं को उचित आकार देता है। इसके विभिन्न भाग पांचभौतिक घटकों से बने होते हें अतः किसी भी भौतिक कारण से उसके किसी भी सैल  में स्थायी या अस्थायी या आंशिक आघात हो सकता है। अतः वह सैल सामान्य अवस्था की तुलना में अब उतना अच्छा काम नहीं कर पायेगा, वह मन की तरंगों को प्रभावी ढंग से प्रेषित नहीं कर पायेगा यह मस्तिष्क की बीमारी हुई। कभी कभी ब्रेन सैल एबनार्मल हो जाता है और मन के संवेदनों को नहीं समझ पाता यह भी मस्तिष्क की बीमारी हुई। परंतु यदि मन को एक्टोप्लाज्मिक भाग में गड़बड़ी होने पर मस्तिष्क प्रेरक इनपुट नहीं दे पाता है तो वह विचार प्रक्रिया और स्मृति को सामान्य नहीं बनाये रख सकता। ये मानसिक वीमारी है। अन्य मानसिक बीमारियां हैं किसी विशेष व्यक्ति को देखकर क्रोधित हो जाना, किसी की नापसंद भावनाओं की हंसी उड़ाना, किसी बात पर बिना कारण उत्तेजित होना, स्थिरचित्त न होना। मन ही स्मृति का आधार है मस्तिष्क नहीं। इसलिये स्मरण की कमी मन की असहजता है ब्रेन की नहीं । परंतु ब्रेन में कमजोरी के कारण सामान्य मन के अनेक लोग भी उचित तरीके से याद नहीं रख पाते यह ब्रेन की बीमारी है न कि मन की।

No comments:

Post a Comment