Sunday 12 April 2015

प्रश्नोत्तर (प्र- 47  से आगे-----)

48. जो लंबे बाल रखते हैं, नारंगी कपड़े पहनते हैं और ‘‘संन्नयासी‘‘ हो जाते हैं क्या मानसिक बीमारी से ग्रस्त रहते हैं?
-हाॅं। यद्यपि यह सुनने में बुरा लगेगा पर यह कटुसत्य है। सांसारिक मामलों से हताश  हुए या किसी प्रकार के भय से, लोग पलायनवादी नीति अपनाते हैं। कुछ सांसारिक जिम्मेवारियों से बचने के लिये संन्नयासी हो जाते हैं। कुछ पृथकता की कसक से, कुछकर्ज के बोझा से, कुछ अकादमिक असफलता से और कुछ पारिवारिक समस्याओं से संतुष्ठी पाने के लिये कहने लगते हैं कि संसार माया है। वे हिमालय में रहेंगे पर यह भूल जावेंगे कि हिमालय भी संसार में ही है, वहां कपड़ों की चिन्ता भले न करना पड़े पर भोजन के लिये उन्हें पेड़ पौधों और माया के सांसारिक लोगों के पास ही जाना पड़ेगा । पुलिस के भय से चोर और काम के भय से आलसी लोग संसार को माया कहकर संन्नयासी होकर लोगों की गाढ़े कमाई को भीख में लेते हैं पर वे अपने इस नये संसार को माया नहीं कहते।
49. सभी धर्मों का एकीकरण कहां तक संभव है?
-अनन्त आनन्द प्राप्त करने का प्रयास करना ही मानवता का एकमात्र धर्म हैं इसलिये मानवता ही धर्म है अतः धर्म के एकीकरण का प्रश्न  ही नहीं उठता है। विभिन्न रिलीजनों के वीच कर्मकांडीय भिन्नताओं का कारण आध्यात्मिक भिन्नता नहीं कहा जा सकता। जहां कर्मकांड प्रभावी हो और आनन्द की प्राप्ति के प्रयास कमजोर हों उसे जो चाहे कहो पर आध्यात्मिकता नहीं कहा जा सकता।
50. व्यवसाय के अनुसार समाज का वर्गीकरण किया जाना कितना उचित है?
-संसार  में मूल्यहीन कुछ नहीं है, जब विज्ञान अविकसित था और उद्योग वास्तव में कुटीर उद्योग ही थे तब एक ही परिवार के लोग अनेक पीढि़यों तक एक ही व्यवसाय को करते चले जाते थे और उनके ये प्रयत्न उन्हें उन्नत अवस्था में ले गये। अतः उन दिनों व्यवसाय के आधार पर सामाजिक वर्गीकरण अनुचित नहीं था। आज का संसार पूर्णतः बदल चुका है और व्यवसाय उत्तराधिकार में नहीं मिलते। टेक्नालाजी के उन्नत हो जाने के इस युग में व्यवसायों का उत्तराधिकार बनाये रखना अर्थहीन है। इसके अलावा, जब इस आधार पर सामाजिक वर्गीकरण उचित माना जाता था उस समय जातियों का आधार आवश्यक  नहीं था।

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