मनोविज्ञान प्रश्नोत्तर प्र- 37 से आगे
38. दीक्षा क्या है?
- दीक्षा वह प्रक्रिया है जिसमें आध्यात्मिक प्रकाश मिलने के साथ संस्कारों का क्षय होना प्रारंभ हो जाता है।
39. वैदिक दीक्षा क्या है?
- वैदिक दीक्षा कोई उपासना पद्धति नहीं है, इसमें परम पुरुष से उचित मार्ग दिखाने की प्रार्थना करने का लक्ष्य होता है। प्रार्थना के रूपमें ईश्वर की प्रशंसा की जाती हैं
40. तान्त्रिक दीक्षा क्या है?
- तान्त्रिक दीक्षा एक उपासना पद्धति है। इसमें गुरु की भूमिका महत्वपूर्ण होती है वह आशीर्वाद देकर इष्ट चक्र और इष्ट मंत्र देते हैं। इसमें लक्ष्य होता है कि परम पुरुष के साथ एक हो जावें।
41. वैदिक और तान्त्रिक दीक्षा में क्या अंतर है?
- वैदिक दीक्षा केवल प्रार्थना है उसकी कोई आध्यात्मिक उपासना पद्धति नहीं है। इसमें इष्ट मंत्र और इष्ट चक्र की कोई प्रणाली नहीं है। जबकि तान्त्रिक दीक्षा व्यावहारिक उपासना पद्धति है जिसमें इष्ट चक्र और इष्ट मंत्र होता है।
42. बुद्ध के विचार और तान्त्रिक विचार से पुनर्जन्म में क्या अंतर है?
- तंत्र के अनुसार पुनर्जन्म, पराशक्ति के द्वारा जीवात्मा का एक शरीर से दूसरे शरीर में ले जाना (transformation) कहलाता है। मानव जीवात्मा गाय, ऊंट , भेड़ आदि किसी के भी शरीर में संस्कारों के अनुसार जा सकती है अर्थात् जीवात्मा गति करती है। बुद्ध ने कहा पुनर्जन्म होगा, पर किसका? यह नहीं बता सके। जीवात्मा के संबंध में उन्होंने कुछ नहीं कहा।
दोनों ही स्थितियों में वह न्यूनतम संस्कार ही होते हैं जो किसी को उसे पुनर्जन्म दिलाने में आधार बनते हैं।
43. मेक्रो पीनियल प्लेक्सस (macro-pineal plexus) क्या है? उसका साधना की कार्यवाही में क्या उपयोगिता है?
- पीनियल प्लेक्सस के भीतरी ओर का भाग मेक्रोपीनियल प्लेक्सस कहलाता है । आध्यात्मिक साधना में इसका बहुत अधिक महत्व है क्यों कि यह गुरु चक्र कहलाता है जिस पर ध्यान का अभ्यास किया जाता है।
44. पीनियल प्लेक्सस की बाहरी सतह शरीर के भीतर होती है या बाहर?
- वह शरीर के बाहर होती है।
45. ओंकार क्या है?
- ब्रह्माॅड के निर्माण, संरक्षण और विनाश की समग्र प्रक्रिया की संयुक्त ध्वनि को ओंकार कहते हैं।
46. ओकार का प्रारंभिक विंदु क्या है?
- वह शंभुलिंग से प्रारंभ होता है,अर्थात परमपुरुष के इच्छाबीज से प्रारम्भ होता है।
47. सविकल्प और निर्विकल्प समाधियों में क्या अंतर है?
- इकाई मन के विस्तार में जब अहम और चित्त तत्व दोनों महत् तत्व मिल जाते हैं तो इसे सविकल्प समाधि कहते हैं। जब महत् तत्व इकाई चेतना में मिलकर गुणों के बंधन से दूर हो जाता है तो उसे निर्विकल्प समाधि कहते हैं।
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