Monday 6 April 2015

कुछ प्रश्नोत्तर (प्र - 22 से आगे-----)


कुछ प्रश्नोत्तर (प्र - 22 से आगे-----)

23. क्या चित्त अर्थात् मन और पंच भूतों में कोई अंतर है?
-कोई मौलिक अंतर नहीं, दोनों प्रकृति से बंधे चेतना के प्रकार हैं। असमानता केवल बंधन के स्तर में है। जैसे जब भूमा मन का निर्माण होता है तो उसका बंधन स्तर आकाश  तत्व के बंधन से कम होता है। अतः जैसे जैसे बंधन स्तर में बृद्धि होती जाती है वायु अग्नि, द्रव और ठोस तत्वों का निर्माण होता जाता है। जलवाष्प, जल और वर्फ में तत्वतः कोई अंतर नहीं। उनके रूपों में असमानता प्राकृतिक बंधनों के बदलते बंधन स्तर के कारण है। इसी प्रकार सांसारिक और सांसारेतर पदार्थो में अंतर प्रतीत होता है पर वे सभी एक ही चेतना से बने होते हैं। चेतना से आकाश , आकाश  से वायु, वायु से अग्नि अग्नि से द्रव और द्रव से ठोस घटकों का निर्माण होता है।

24. मनुष्यों को प्राप्त स्वतंत्रता निर्पेक्ष होती है या स्वामित्व जैसी?

-उसे आप निर्पेक्ष स्वतंत्रता नहीं कह सकते क्योंकि मानव परमपुरुष की कृपा पर निर्भर रहते हैं, उनकी सभी अच्छी या बुरी गतिविधियां सीमित क्षेत्र  में ही होतीं हैं। इकाई चेतना के परम चेतना में मिलने के पहले निर्पेक्ष स्वतंत्रता प्राप्त होना असंभव है।
25. कहा जाता है कि सुख और दुख का मूल कारण अविद्या है और साधना द्वारा जीव बंधन मुक्त हो जाता है, इस स्थिति में कौन मुक्त होता है?
-इकाई मन स्वतंत्रता पाता है और परम चेतना के समान विस्तारित हो जाता है। उसके लिये पद ‘स्वतंत्रता‘ अर्थहीन है जो पुरुषोत्तम को परम साक्षी सत्ता नहीं मानता। जो निर्गुण ब्रह्म को नहीं मानता उसे मोक्ष की संकल्पना अर्थहीन है। यही कारण है कि नास्तिक को मुक्ति, मोक्ष, केवल्य, निर्वाण और परिनिर्वाण पूर्णतः महत्वहीन हैं।

26. क्या यह कहना सही है कि सगुण ब्रह्म समय का निर्माता है?

-समय, पात्र और स्थान सगुण ब्रह्म की कल्पना से उत्पन्न होते हैं अतः निश्चय  ही वह समय का निर्माता है।

27. इकाई चेतना का विषय ‘‘एक‘‘ है या ‘‘अनेक‘‘?

-संयुक्त चेतना का विषय यह द्रश्य  संसार है, इस संसार की प्रत्येक बस्तु अपनी सीमित  इकाई चेतना के साथ गतिशील है। इस गतिशीलता की समग्रता ब्राह्मिक मन की कल्पना के प्रवाह के रूप में दिखाई देती है। इस ब्राह्मिक मन में परमचेतना, प्रत्येक वस्तु का साक्ष्य विना उनसे संबद्ध हुए देती रहती है।

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