प्रश्नोत्तर ( प्र-30 से आगे ---)
31. क्या यह कहना सत्य होगा कि प्रकृति इकाई अस्तित्व वाली है?
-नहीं, प्रकृति संचालिकाशक्ति है और वह विभिन्नताओं का निर्माण करती है। मूल सत्ता जिससे विभिन्नता निर्मित की गई है वह प्रकृति नहीं है। वस्तुओं का निर्माण मूलसत्ता पर प्रकृति के जड़ात्मक प्रभाव के कारण होता है और इनमें विभिन्नता होना, जड़ता के प्रभाव की तीव्रताओं की भिन्नता पर आधारित होता है। इसलिये प्रकृति किसी भी प्रकार से इकाई अस्तित्व वाली नहीं है।
32. ‘‘पुरुष‘‘ शब्द का मतलब क्या है?
-पुरे षेते यः सः पुरुषः। अर्थात् वह अस्तित्व जो किसी क्रिया में भागीदार न होते हुए उसका साक्ष्य देता है पुरुष कहलाता है।
33. क्या सगुण ब्रह्म अपने स्वयं के अस्तित्व के बारे में सचेत रहता है? यदि हां तो प्रमाण?
-वह जो इस ब्रह्मांड का निर्माण अपनी कल्पना के प्रवाह से करता है अवश्य ही अपने अस्तित्व के बारे में सचेत रहता है क्योंकि अस्तित्व के बारे में सचेत होना, कल्पना के प्रवाहित रहने की प्रथम शर्त है।
34. क्या जीव, सगुण ब्रह्म और निर्गुण ब्रह्म, भूत वर्तमान और भविष्य की संकल्पना के बारे में जानकारी रखते हैं?
-विभिन्न जीवधारी समय और अन्य सापेक्षिक घटकों के बारे में जानकारी अपने आसपास की वस्तुओं में होने वाली गति या स्थिरता के आधार पर करते हैं, उनके इस कार्य में इंद्रियाॅं निर्णायक सहायता करती हैं। अतः जीवों में देश काल और पात्र के संबंध में सीमित ज्ञान अवश्य रहता है परंतु चूंकि सगुणब्रह्म के बाहर कुछ होता ही नहीं है अतः किसी संवेदन को स्वीकार करने या अस्वीकार करने के लिये उन्हें किन्हीं इंद्रियों की आवश्यकता नहीं होती। देश काल और पात्र के घटक, जिनसे जीव बंधे रहते हें ब्रह्म के लिये सब आन्तरिक होते हैं। सगुण ब्रह्म इन सापेक्षिक घटकों का नियंत्रक है और जीवों के लिये इनका निर्माता तथा साक्षी। वह उनसे बंधता नहीं है पर जानकारी अवश्य रखता है। निर्गुण ब्रह्म का इस संसार से कोई संबंध नहीं होता अतः देश काल और पात्र से किसी भी प्रकार का साथ नहीं होता।
35. नास्तिक किसे कहा जावे?
-जो आत्मा परमात्मा और वेदों में विश्वास नहीं करते वे नास्तिक हैं। इनमें से किसी एक में विश्वास करने वाला आस्तिक है। इसतरह क्रश्चियन , मुसलिम, ज्यू, आर्यसमाजी, ब्रह्मसमाजी आदि को आस्तिक कहा जा सकता है। वे जो सांकेतिक रूप से तिल, पवित्र जल और वस्तुएं, मृत आत्माओं को देते हैं मूर्ति पूजक हैं और अनेक कहानियों के आधार पर लोगों को प्रंभावित करते हैं, सही प्रकार के आस्तिक नहीं कहे जा सकते। वे जो कई अन्य धर्म मानते हैं पर आत्मा, परमात्मा और वेदों को नहीं मानते वे नास्तिक हैं।
36. क्या पुरुषोत्तम पर प्रकृति अपना कोई प्रभाव डालती है? यदि हां तो उसका क्या परिणाम होता है?
-यद्यपि पुरुषोत्तम प्रकृति के बंधन में नहीं होते पर उनका प्रकृति के साथ कुछ संबंध होता है। अतः, वह गुणों के नियंत्रण से बाहर होते हैं फिर भी वे पूर्ण रूपेण उनसे अलग नहीं रह पाते। यही कारण है कि उन्हें संचर , प्रतिसंचर और ब्रह्म मन के साक्षित्व का भार सौपा गया है।
37. क्या प्रकृति का इकाई चेतना पर कोई प्रभाव होता है?
-पुरुषोत्तम की तरह इकाई चेतना का भी प्रकृति के साथ वैषयिक साथ होता है इसलिये वह भी जीवधारी के संचर, प्रतिसंचर की साक्षीसत्ता होती है।
31. क्या यह कहना सत्य होगा कि प्रकृति इकाई अस्तित्व वाली है?
-नहीं, प्रकृति संचालिकाशक्ति है और वह विभिन्नताओं का निर्माण करती है। मूल सत्ता जिससे विभिन्नता निर्मित की गई है वह प्रकृति नहीं है। वस्तुओं का निर्माण मूलसत्ता पर प्रकृति के जड़ात्मक प्रभाव के कारण होता है और इनमें विभिन्नता होना, जड़ता के प्रभाव की तीव्रताओं की भिन्नता पर आधारित होता है। इसलिये प्रकृति किसी भी प्रकार से इकाई अस्तित्व वाली नहीं है।
32. ‘‘पुरुष‘‘ शब्द का मतलब क्या है?
-पुरे षेते यः सः पुरुषः। अर्थात् वह अस्तित्व जो किसी क्रिया में भागीदार न होते हुए उसका साक्ष्य देता है पुरुष कहलाता है।
33. क्या सगुण ब्रह्म अपने स्वयं के अस्तित्व के बारे में सचेत रहता है? यदि हां तो प्रमाण?
-वह जो इस ब्रह्मांड का निर्माण अपनी कल्पना के प्रवाह से करता है अवश्य ही अपने अस्तित्व के बारे में सचेत रहता है क्योंकि अस्तित्व के बारे में सचेत होना, कल्पना के प्रवाहित रहने की प्रथम शर्त है।
34. क्या जीव, सगुण ब्रह्म और निर्गुण ब्रह्म, भूत वर्तमान और भविष्य की संकल्पना के बारे में जानकारी रखते हैं?
-विभिन्न जीवधारी समय और अन्य सापेक्षिक घटकों के बारे में जानकारी अपने आसपास की वस्तुओं में होने वाली गति या स्थिरता के आधार पर करते हैं, उनके इस कार्य में इंद्रियाॅं निर्णायक सहायता करती हैं। अतः जीवों में देश काल और पात्र के संबंध में सीमित ज्ञान अवश्य रहता है परंतु चूंकि सगुणब्रह्म के बाहर कुछ होता ही नहीं है अतः किसी संवेदन को स्वीकार करने या अस्वीकार करने के लिये उन्हें किन्हीं इंद्रियों की आवश्यकता नहीं होती। देश काल और पात्र के घटक, जिनसे जीव बंधे रहते हें ब्रह्म के लिये सब आन्तरिक होते हैं। सगुण ब्रह्म इन सापेक्षिक घटकों का नियंत्रक है और जीवों के लिये इनका निर्माता तथा साक्षी। वह उनसे बंधता नहीं है पर जानकारी अवश्य रखता है। निर्गुण ब्रह्म का इस संसार से कोई संबंध नहीं होता अतः देश काल और पात्र से किसी भी प्रकार का साथ नहीं होता।
35. नास्तिक किसे कहा जावे?
-जो आत्मा परमात्मा और वेदों में विश्वास नहीं करते वे नास्तिक हैं। इनमें से किसी एक में विश्वास करने वाला आस्तिक है। इसतरह क्रश्चियन , मुसलिम, ज्यू, आर्यसमाजी, ब्रह्मसमाजी आदि को आस्तिक कहा जा सकता है। वे जो सांकेतिक रूप से तिल, पवित्र जल और वस्तुएं, मृत आत्माओं को देते हैं मूर्ति पूजक हैं और अनेक कहानियों के आधार पर लोगों को प्रंभावित करते हैं, सही प्रकार के आस्तिक नहीं कहे जा सकते। वे जो कई अन्य धर्म मानते हैं पर आत्मा, परमात्मा और वेदों को नहीं मानते वे नास्तिक हैं।
36. क्या पुरुषोत्तम पर प्रकृति अपना कोई प्रभाव डालती है? यदि हां तो उसका क्या परिणाम होता है?
-यद्यपि पुरुषोत्तम प्रकृति के बंधन में नहीं होते पर उनका प्रकृति के साथ कुछ संबंध होता है। अतः, वह गुणों के नियंत्रण से बाहर होते हैं फिर भी वे पूर्ण रूपेण उनसे अलग नहीं रह पाते। यही कारण है कि उन्हें संचर , प्रतिसंचर और ब्रह्म मन के साक्षित्व का भार सौपा गया है।
37. क्या प्रकृति का इकाई चेतना पर कोई प्रभाव होता है?
-पुरुषोत्तम की तरह इकाई चेतना का भी प्रकृति के साथ वैषयिक साथ होता है इसलिये वह भी जीवधारी के संचर, प्रतिसंचर की साक्षीसत्ता होती है।
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